“₹15 का समोसा खरीदा, चटनी मांगी तो बोला – तेरी औकात नहीं है!” — लखनऊ की गणपति स्वीट्स ने पार की बदतमीज़ी की हदें, ग्राहक सम्मान का खुलेआम अपमान

दैनिक इंडिया न्यूज़,07 अगस्त 2025लखनऊ।
गुलाचीन मंदिर के पास स्थित गणपति स्वीट्स एक बार फिर अपने घमंड, बदतमीज़ी और ग्राहक विरोधी व्यवहार को लेकर चर्चा में है। मंगलवार को घटित एक ताज़ा घटनाक्रम ने इस प्रतिष्ठान की हकीकत को उजागर कर दिया, जब एक आम ग्राहक से सिर्फ इसलिए अपमानजनक भाषा में बात की गई क्योंकि उसने ₹15 में एक समोसा खरीदते समय चटनी की मांग कर दी।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, दुकान पर मौजूद सेल्समेन ने ग्राहक से कहा –

“जिसकी दो समोसे खरीदने की औकात नहीं है, उसको चटनी नहीं मिलती!”

यह बयान न केवल अमर्यादित था, बल्कि ग्राहक की गरिमा पर सीधा हमला था। ग्राहक स्तब्ध रह गया, लेकिन वहां मौजूद कर्मचारियों और अन्य लोगों के चेहरों पर कोई शर्म या अफसोस दिखाई नहीं दिया।

एक बार नहीं, बार-बार होता रहा है ऐसा व्यवहार

स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब गणपति स्वीट्स का स्टाफ इस तरह की भाषा का प्रयोग करता है। गाली-गलौज, गंदगी, और घमंड से भरे व्यवहार की शिकायतें पहले भी आई हैं। कई ग्राहकों ने दुकान के गंदे वातावरण, घटिया सेवा और ताना मारते हुए लहजे की बात पहले भी साझा की है। इसके बावजूद दुकान पर किसी भी तरह की प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई।

“यह आम आदमी की दुकान नहीं है”

घटना के बाद जब लोगों ने विरोध दर्ज कराया तो दुकान से जुड़े कुछ लोगों ने टिप्पणी की कि,

“यह कोई आम आदमी की दुकान नहीं है। यह बीजेपी के पूर्व ब्लॉक प्रमुख की दुकान है। यहां तो गवर्नमेंट का कोई भी अधिकारी आता है, तो घुटने टेककर खड़ा रहता है।”

इस बयान ने पूरे घटनाक्रम को एक नए आयाम में पहुंचा दिया, जहां एक दुकानदार का राजनीतिक रसूख, सरकारी मशीनरी और उपभोक्ता सम्मान के बीच सीधा टकराव दिखने लगा है।

न फूड सेफ्टी का डर, न प्रशासन की चिंता

खाद्य सुरक्षा विभाग की चुप्पी और निष्क्रियता भी सवालों के घेरे में है। जहां एक ओर सामान्य दुकानों पर नियमित जांच होती है, वहीं गणपति स्वीट्स जैसे प्रतिष्ठानों पर कोई निगरानी नहीं दिखाई देती। यहां स्वच्छता मानकों की धज्जियां उड़ती हैं, कर्मचारी बिना यूनिफॉर्म के काम करते हैं और ग्राहकों के साथ व्यवहार असंवेदनशील और अपमानजनक होता है।

व्यापार मंडल की चुप्पी – समर्थन या सहमति?

जब भी कोई उपभोक्ता इस प्रकार के दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाता है, तो अक्सर व्यापार मंडल एक ढाल की तरह सामने आता है – लेकिन दुकानदारों के पक्ष में, न कि उपभोक्ताओं के। यह प्रवृत्ति लगातार उपभोक्ताओं को हतोत्साहित कर रही है और असंवेदनशील दुकानदारों को ताकत दे रही है।

यह सिर्फ एक समोसा नहीं, एक सोच का अपमान है

यह घटना सिर्फ ₹15 के समोसे की नहीं है, बल्कि एक ऐसी सोच की है जहां ग्राहक को ‘औकात’ से तोला जाता है। यह सोच लोकतांत्रिक मूल्यों, उपभोक्ता अधिकारों और सामाजिक मर्यादा पर हमला है। जब कोई दुकानदार खुद को कानून और व्यवस्था से ऊपर समझने लगे, तो यह सिर्फ व्यापार नहीं, सामाजिक अहंकार का प्रतीक बन जाता है।


समाज को देना होगा जवाब – बहिष्कार ही एकमात्र उपाय

जनता से अपील है कि ऐसे दुकानों का सामाजिक बहिष्कार करें। जहां ग्राहक को अपमानित किया जाता है, वहां से कोई भी वस्तु न खरीदें। अगर हम चुप रहेंगे, तो ऐसे व्यवहार को हम ही वैधता दे रहे होंगे।

आपका एक-एक रूपया उन दुकानों की ताकत बनता है जो आपकी गरिमा को कुचलते हैं। वक्त है कि उन्हें बताया जाए – ग्राहक भगवान होता है, भिखारी नहीं।

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