सीतापुर पत्रकार हत्याकांड: सगे भाई शूटर एनकाउंटर में ढेर, मां मुस्लिम, पिता हिंदू — दोनों के नामों में ‘तिवारी’ भी, ‘खान’ भी!

🕵️ कहानी में ट्विस्ट, किरदारों में रहस्य और न्याय के नाम पर खड़ा सवाल…

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,सीतापुर, उत्तर प्रदेश —
तड़के सुबह सन्नाटे को चीरती गोलियों की आवाज़, बाइक पर सवार दो सगे भाई, और उन्हें रोकने की कोशिश कर रही STF की टीम। कुछ ही सेकंड में गोलियां चलीं और पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई के हत्यारों की कहानी उसी ज़मीन पर खत्म हो गई, जहां उन्होंने सालों से खौफ बोया था। लेकिन क्या यही न्याय है? या फिर कहानी अब भी अधूरी है?

🧨 दो नाम, दो धर्म, एक कत्ल की कहानी…

राजू तिवारी उर्फ रिजवान खान और संजय तिवारी उर्फ अकील खान — ये सिर्फ नाम नहीं, एक जटिल पहचान की परतें हैं, जो इस हत्याकांड को और रहस्यमय बनाते हैं। पिता हिंदू, मां मुस्लिम। पुलिस रिकॉर्ड से लेकर आधार कार्ड तक, हर दस्तावेज़ में दो अलग-अलग पहचान। तिवारी भी, खान भी।

STF ने जब इन दोनों को सीतापुर के पिसावा इलाके में रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में दोनों ढेर हो गए। जिला अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

दोनों पर एक-एक लाख रुपये का इनाम था। ये वही नाम हैं जिनकी पहचान पत्रकार हत्याकांड की सबसे ख़ौफ़नाक कड़ी के रूप में की जा रही थी।

🔍 हत्या या सुनियोजित चुप्पी? पत्रकार की पत्नी ने खड़े किए सवाल

पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की पत्नी रश्मि बाजपेई इस एनकाउंटर से संतुष्ट नहीं हैं। उनका साफ कहना है –

“हमें इंसाफ नहीं मिला। कहा गया था कि एनकाउंटर हमारी आंखों के सामने होगा, वहीं जहां मेरे पति की हत्या हुई थी। लेकिन सब कुछ चुपचाप निपटा दिया गया। हमें कोई सूचना तक नहीं दी गई।”

उनका यह बयान पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या यह केवल खानापूर्ति थी?
क्या असली साजिशकर्ता अब भी पर्दे के पीछे हैं?

⚰️ पत्रकार की हत्या: सिर्फ खबर छापने की सजा? या कुछ और…

8 मार्च 2025 —
लखनऊ-दिल्ली नेशनल हाईवे पर एक बाइक सवार पत्रकार पर दो नकाबपोश हमलावरों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं।
तीन गोलियां, कंधे और सीने में,
मौके पर मौत,
और उसके बाद शुरू हुआ एक सवालों भरा संघर्ष।

पता चला कि पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई ने कारेदेव बाबा मंदिर के पुजारी को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था। पुजारी को डर था कि ये सच बाहर न आ जाए। 4 लाख रुपये की सुपारी दी गई और सगे भाई शूटरों ने हत्या कर दी।

😈 पुजारी, पैसा और प्लान: हत्याकांड का मास्टरमाइंड कौन?

पुलिस जांच में सामने आया कि हत्याकांड की साजिश पुजारी शिवानंद बाबा उर्फ विकास राठौर ने रची थी।
वजह?
ब्लैकमेल, डर और इज़्ज़त का डर।
शिवानंद बाबा ने अपने करीबी असलम गाजी और निर्मल सिंह के जरिए दोनों शूटर भाइयों से संपर्क किया और हत्या करवा दी। पुलिस ने इन तीनों को पहले ही जेल भेज दिया है।

🧾 दो जीवन, दो अपराधी, एक DNA

राजू और संजय का इतिहास छोटा नहीं है।
इनके खिलाफ हत्या, डकैती और लूट के 24 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं।

राजू ने 2006 में लखीमपुर में दरोगा परवेज अली की हत्या की थी।

संजय ने 2011 में सीतापुर में देवी सहाय शुक्ल की हत्या की।

उनके माता-पिता की प्रेम कहानी भी इस कहानी में एक और परत जोड़ती है। मां नज्जो मुस्लिम थीं, पिता कृष्ण गोपाल त्रिपाठी हिंदू। दोनों ने प्रेम विवाह किया था।
परिवार टूटा, पहचानें बंटीं और बच्चे अपराध की दुनिया में खो गए।

❓ सीबीआई जांच की मांग: क्या सच्चाई अब भी कहीं छुपी है?

पत्रकार की पत्नी रश्मि बाजपेई की मांग है कि इस पूरे हत्याकांड की CBI जांच होनी चाहिए।
उनके मुताबिक —

“जो लोग असली दोषी हैं, वो अब भी बाहर घूम रहे हैं। हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं। जो हमारे समर्थन में आए, उन्हें प्रताड़ित किया गया।”

📰 पत्रकारिता की हत्या या सिस्टम की चुप्पी?

यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि पत्रकारिता पर हमला है — उस विचार पर हमला है जो सवाल पूछता है, सच उजागर करता है, और सत्ता के गलियारों में हलचल पैदा करता है।

शूटर मारे गए, पुलिस ने फाइल बंद कर दी — लेकिन क्या सिर्फ शूटर ही गुनहगार थे?
क्या जिन लोगों ने हत्या का आदेश दिया, पैसे दिए, सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही की, या आंखें मूंद ली — क्या वे अब भी आज़ाद हैं?

इस हत्याकांड ने तीन बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं:

  1. 🕵️ क्या न्याय हुआ, या कहानी जल्दबाज़ी में खत्म कर दी गई?

पत्रकार की पत्नी को भरोसे में नहीं लिया गया, एनकाउंटर से पहले सूचना नहीं दी गई — यह संदेह पैदा करता है कि कहीं ये सच्चाई को ‘दफन’ करने की कोशिश तो नहीं?

  1. 🔗 क्या असली मास्टरमाइंड तक पुलिस की पहुंच हुई, या सिर्फ मोहरे मारे गए?

पुजारी, अपराधी, दलाल — सबके नाम आए, लेकिन क्या किसी प्रभावशाली व्यक्ति का नाम छिपाया गया?

  1. 🧱 क्या भारत में पत्रकारिता सुरक्षित है?

एक रिपोर्ट छापने या काले सच को उजागर करने की कीमत गोली है?

क्या अब पत्रकार पहले अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम करेंगे, फिर सवाल पूछेंगे?

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