
“विधायी प्रारूपण केवल तकनीकी कार्य नहीं, लोकतंत्र की आत्मा है”

“सरल और स्पष्ट भाषा में कानून बनाने पर जोर, न्याय की गति और पारदर्शिता सुनिश्चित”

“विधायी प्रारूपण केवल तकनीकी कार्य नहीं, लोकतंत्र की आत्मा है”
“सरल और स्पष्ट भाषा में कानून बनाने पर जोर, न्याय की गति और पारदर्शिता सुनिश्चित”
चंडीगढ़, दैनिक इंडिया न्यूज:चंडीगढ़ में आयोजित दो दिवसीय लेजिसलेटिव ड्राफ्टिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने विधायी प्रारूपण (Legislative Drafting) के महत्व और लोकतंत्र में इसकी भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह केवल तकनीकी कार्य नहीं, बल्कि कानून निर्माण की प्रक्रिया में लोकतंत्र की आत्मा है।
ओम बिरला ने कहा, “हर सरकार की कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक जनता की भावनाओं और आकांक्षाओं को पूरा किया जाए और शासन-प्रशासन में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित हो। इसके लिए विधायी प्रारूपण एक महत्वपूर्ण पहलू है।” उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि संविधान ने राज्यों को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया है, और कानून निर्माण के समय संविधान की मूल भावनाओं तथा जनता की चुनौतियों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है।
लोकसभा अध्यक्ष ने कानून निर्माण के मूल उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा, “कार्यपालिका की जवाबदेही तय हो और लोगों को त्वरित न्याय मिले — यही किसी भी कानून का मूल लक्ष्य होना चाहिए। जब संविधान बना था, तब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों और सीमाओं का स्पष्ट विभाजन किया गया था। भारत का संविधान आज भी मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहा है।”
ओम बिरला ने विधायी प्रारूपण की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि कानून जितना बेहतर ढंग से ड्राफ्ट किया जाएगा, उतना ही प्रभावी और स्पष्ट कानून बनेगा। इसके लिए भाषा सरल, स्पष्ट और आम जनता के लिए समझने योग्य होनी चाहिए। “यदि कानून के प्रारूप में अस्पष्टता या ‘ग्रे एरिया’ रहेगा, तो न्यायपालिका के हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए ड्राफ्टिंग बिल्कुल स्पष्ट और निश्चित होनी चाहिए।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अच्छा शासन वही है जो समय की आवश्यकता के अनुसार कानूनों में संशोधन करे और जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप नए कानून बनाए। लोकतंत्र की ताकत सहमति और असहमति दोनों में है, लेकिन यदि विधायी प्रारूपण अच्छा होगा तो सदन में विचारधारात्मक मतभेदों के बावजूद कानून की भाषा और संरचना पर कोई आपत्ति नहीं उठेगी।
लोकसभा अध्यक्ष ने राज्य विधानसभाओं को नियमित रूप से इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी, ताकि विधायी प्रारूपण का अनुभव और ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके। उन्होंने कहा कि यह कौशल केवल विधायकों के लिए नहीं, बल्कि समस्त प्रशासनिक और विधायी तंत्र के लिए आवश्यक है, ताकि कानून प्रभावी, पारदर्शी और जनता के अनुकूल बन सके।
कार्यक्रम में विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों और विधायी विशेषज्ञों की बड़ी संख्या ने भाग लिया और लोकसभा अध्यक्ष के मार्गदर्शन को अत्यंत लाभकारी बताया गया।
चंडीगढ़ में आयोजित दो दिवसीय लेजिसलेटिव ड्राफ्टिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने विधायी प्रारूपण (Legislative Drafting) के महत्व और लोकतंत्र में इसकी भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह केवल तकनीकी कार्य नहीं, बल्कि कानून निर्माण की प्रक्रिया में लोकतंत्र की आत्मा है।
ओम बिरला ने कहा, “हर सरकार की कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक जनता की भावनाओं और आकांक्षाओं को पूरा किया जाए और शासन-प्रशासन में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित हो। इसके लिए विधायी प्रारूपण एक महत्वपूर्ण पहलू है।” उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि संविधान ने राज्यों को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया है, और कानून निर्माण के समय संविधान की मूल भावनाओं तथा जनता की चुनौतियों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है।
लोकसभा अध्यक्ष ने कानून निर्माण के मूल उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा, “कार्यपालिका की जवाबदेही तय हो और लोगों को त्वरित न्याय मिले — यही किसी भी कानून का मूल लक्ष्य होना चाहिए। जब संविधान बना था, तब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों और सीमाओं का स्पष्ट विभाजन किया गया था। भारत का संविधान आज भी मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहा है।”
ओम बिरला ने विधायी प्रारूपण की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि कानून जितना बेहतर ढंग से ड्राफ्ट किया जाएगा, उतना ही प्रभावी और स्पष्ट कानून बनेगा। इसके लिए भाषा सरल, स्पष्ट और आम जनता के लिए समझने योग्य होनी चाहिए। “यदि कानून के प्रारूप में अस्पष्टता या ‘ग्रे एरिया’ रहेगा, तो न्यायपालिका के हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए ड्राफ्टिंग बिल्कुल स्पष्ट और निश्चित होनी चाहिए।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अच्छा शासन वही है जो समय की आवश्यकता के अनुसार कानूनों में संशोधन करे और जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप नए कानून बनाए। लोकतंत्र की ताकत सहमति और असहमति दोनों में है, लेकिन यदि विधायी प्रारूपण अच्छा होगा तो सदन में विचारधारात्मक मतभेदों के बावजूद कानून की भाषा और संरचना पर कोई आपत्ति नहीं उठेगी।
लोकसभा अध्यक्ष ने राज्य विधानसभाओं को नियमित रूप से इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी, ताकि विधायी प्रारूपण का अनुभव और ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके। उन्होंने कहा कि यह कौशल केवल विधायकों के लिए नहीं, बल्कि समस्त प्रशासनिक और विधायी तंत्र के लिए आवश्यक है, ताकि कानून प्रभावी, पारदर्शी और जनता के अनुकूल बन सके।
कार्यक्रम में विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों और विधायी विशेषज्ञों की बड़ी संख्या ने भाग लिया और लोकसभा अध्यक्ष के मार्गदर्शन को अत्यंत लाभकारी बताया गया।