नशे में धुत ट्रक ड्राइवर का कहर और व्यवस्था की नाकामी

दैनिक इंडिया न्यूज़ इंदौर। इंदौर की सड़कों पर सोमवार की शाम हुआ हादसा पूरे प्रदेश के लिए गहरी चिंता का विषय है। कालानी नगर से बड़ा गणपति चौराहे तक दो किलोमीटर के सफर में नशे में धुत एक ट्रक चालक ने महज दस मिनट में 15 से अधिक लोगों को रौंद डाला। इस हादसे में तीन निर्दोष नागरिकों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए। करीब 20 वाहन क्षतिग्रस्त हो गए और बड़ा गणपति चौराहे पर ट्रक में आग लगने से दहशत और बढ़ गई। यह घटना न केवल एक ड्राइवर की लापरवाही का परिणाम है, बल्कि हमारी परिवहन और ट्रैफिक व्यवस्था की घोर विफलता का प्रमाण भी है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस सड़क पर शाम साढ़े सात बजे भारी वाहनों की एंट्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है, वहां ट्रक कैसे घुसा? पुलिस चौकी पर रोके जाने के बावजूद चालक बच निकलने में कैसे सफल हो गया और पूरे डेढ़ किलोमीटर तक मौत का पहिया घूमता रहा? यह स्पष्ट करता है कि हमारी कानून-व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित है। समय रहते प्रभावी रोकथाम की गई होती तो निर्दोष नागरिकों को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता।

शराब पीकर गाड़ी चलाना देशभर में बढ़ती समस्या है। आए दिन नशे में धुत चालकों की वजह से सड़कें खून से लाल होती रहती हैं। इंदौर की घटना ने फिर साबित कर दिया कि ड्रंक एंड ड्राइव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान केवल दिखावा बनकर रह गए हैं। परिवहन अधिकारियों और पुलिस को चाहिए कि औपचारिक जांच से आगे बढ़कर नियमित रूप से ब्लड अल्कोहल लेवल की जांच करें। जब तक जांच को कठोर और निरंतर प्रक्रिया नहीं बनाया जाएगा, तब तक निर्दोष लोग इसी तरह मौत का शिकार होते रहेंगे।

अब समय आ गया है कि शराब पीकर वाहन चलाने को सामान्य यातायात अपराध न मानकर हत्या के प्रयास जैसी श्रेणी में रखा जाए। जुर्माना और लाइसेंस निलंबन जैसी सज़ाएं इस समस्या की गंभीरता के मुकाबले बहुत हल्की हैं। जब तक दोषियों को कठोरतम सजा नहीं मिलेगी, तब तक वे बिना डर के सड़कों पर मौत का तांडव मचाते रहेंगे। यह केवल एक कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है कि ऐसे मामलों पर सरकार सख्त और उदाहरण प्रस्तुत करने वाला कानून बनाए।

इस हादसे पर मुख्यमंत्री ने दुख जताते हुए मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है, लेकिन जनता अब संवेदना से आगे ठोस कार्रवाई की अपेक्षा कर रही है। जनता की मांग है कि नशे में गाड़ी चलाने वालों पर हत्या जैसा मुकदमा दर्ज किया जाए, शहरों में निरंतर अल्कोहल जांच अभियान चलाया जाए, ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों पर त्वरित कार्रवाई हो और पीड़ित परिवारों को न्याय और मुआवजा दोनों मिले। जब तक यह अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी, तब तक ऐसे हादसे केवल प्रशासन की लापरवाही और कानून की कमजोरी को उजागर करते रहेंगे।

इंदौर की घटना ने एक बार फिर हमारी सड़कों की असुरक्षा को सामने ला दिया है। सवाल यह है कि क्या इस बार सरकार जागेगी या फिर हमेशा की तरह दुख प्रकट कर चुप बैठ जाएगी? यदि अब भी कठोर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और भयावह रूप में सामने आएंगी और निर्दोष नागरिक इसी तरह मौत के मुंह में धकेल दिए जाएंगे। सड़क पर उतरने वाला हर व्यक्ति सुरक्षा का हकदार है और यह तभी संभव है जब सरकार संवेदना से आगे बढ़कर कठोर कानून और सख्त अमल सुनिश्चित करे।

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