
उपभोक्ता के घर लगा नया मीटर—तीन महीने से नहीं आया बिजली बिल, विभाग के अफसर बने मूकदर्शक
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ। सरकार ने उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए स्मार्ट मीटर लगाए थे, लेकिन अब यही “स्मार्ट मीटर” उपभोक्ताओं के लिए मुसीबत बन गए हैं। राजधानी लखनऊ के अलीगंज सेक्टर–जे निवासी वयोवृद्ध उपभोक्ता आर.के. उपाध्याय पिछले ढाई से तीन महीने से अपने बिजली बिल के लिए उपकेंद्रों के चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं, मगर विभाग के अधिकारी न सुनवाई कर रहे हैं, न समाधान।
उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने 13 अगस्त 2025 को पुराने मीटर का ₹5,882 का अंतिम बिल जमा किया था। इसके बाद उनके घर पर नया “स्मार्ट मीटर” लगाया गया। मीटर में रीडिंग तो दिख रही है, लेकिन तब से अब तक एक भी बिल नहीं बना है, न उन्हें बिल बताया गया और न ही जारी किया गया।
“काम हो जाएगा” का झुनझुना थमा रहे अधिकारी
उपाध्याय का कहना है कि वे पुरनिया अलीगंज उपकेंद्र, अहिबारनपुर उपकेंद्र से लेकर एसडीओ, जेई, एक्सियन तक सबके पास जा चुके हैं। हर जगह यही जवाब मिला — “काम हो जाएगा, सिस्टम अपडेट होते ही बिल दिखने लगेगा।” लेकिन तीन महीने गुजर गए, न बिल बना, न कोई अधिकारी स्थिति स्पष्ट करने को तैयार है।
1912 हेल्पलाइन पर शिकायत भी बेअसर
थके-हारे उपभोक्ता ने विभाग की हेल्पलाइन 1912 पर भी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन परिणाम वही — सिफर!
शिकायत दर्ज होने के बावजूद न फॉलो-अप हुआ, न समस्या का हल।
“हम केवल सुन सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते” — उपकेंद्र कर्मी की बेशर्मी
आर.के. उपाध्याय ने बताया कि जब उन्होंने पुरनिया उपकेंद्र के कमरे नंबर 3 में बैठे कंप्यूटर ऑपरेटर से पूछा कि बिल क्यों नहीं बन रहा, तो उसने कहा — “हम केवल समस्या सुन सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते।” इस पर उपभोक्ता भड़क गए और बोले — “तो फिर आप यहाँ बैठे किसलिए हैं, जनता की मदद के लिए या जनता को और परेशान करने के लिए?”
अब जब बिल बनेगा तो झटके में चुकाना पड़ेगा तीन महीने का भारी रकम!
अब सवाल उठता है कि जब विभाग सिस्टम ठीक करेगा तो तीन महीने का एकमुश्त भारी बिल उपभोक्ता पर टूटेगा। क्या इस स्थिति के लिए उपभोक्ता दोषी है या विभाग की तकनीकी व प्रशासनिक लापरवाही? वयोवृद्ध उपभोक्ता कहते हैं, “हम हर महीने बिल देने को तैयार हैं, लेकिन जब बिल ही नहीं बना तो हम क्या करें?”
स्मार्ट मीटर योजना पर उठे गंभीर सवाल
सरकार और विभाग ने स्मार्ट मीटर को पारदर्शिता की मिसाल बताया था, लेकिन इस मामले ने उसकी हकीकत सामने रख दी है। मीटर में रीडिंग दिख रही है, फिर भी बिल नहीं बन रहा — यह विभागीय लापरवाही का सीधा प्रमाण है।
राजधानी में यह हाल, तो छोटे शहरों का क्या होगा!
लखनऊ जैसे बड़े शहर में अगर उपभोक्ता को महीनों तक भटकना पड़ रहा है, तो छोटे शहरों और कस्बों में स्थिति कितनी गंभीर होगी, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
वयोवृद्ध उपभोक्ता का दर्द सिर्फ़ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि उन सैकड़ों उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है जो “स्मार्ट मीटर” की खामियों की मार झेल रहे हैं।
जनता के सवाल बिजली विभाग से:
- जब मीटर रीडिंग आ रही है तो बिल क्यों नहीं बन रहा?
- क्या सिस्टम इतना “स्मार्ट” है कि उपभोक्ता खुद अपनी रीडिंग देखकर बिल बनाए?
- महीनों तक बिल रोकने का अधिकार विभाग को किसने दिया?
- और जब एक साथ तीन महीने का बिल बनेगा, तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?
“स्मार्ट सिस्टम” या “साइलेंट सिस्टम”?
स्मार्ट मीटर लगाने का दावा करने वाला बिजली विभाग अब जवाबदेही से बचता दिख रहा है। लोग सवाल पूछते हैं तो जवाब मिलता है “सिस्टम में दिक्कत है।” लेकिन अब जनता पूछ रही है — “क्या यह स्मार्ट सिस्टम है या साइलेंट सिस्टम?”
